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धागा

ସେଇ “ମା”

3 thoughts on “धागा”

  1. धागा: जीवन के संबंध, दायित्व और सामाजिक बंधन
    गाँठ: इन बंधनों की जटिलता और उलझन
    जलना: आत्मबलिदान और मुक्ति की चाह
    माँ का धागा: जन्म से मिला नैसर्गिक कर्तव्य और स्नेह का बंधन
    यह कविता मनुष्य की आत्मा की उस पुकार को उजागर करती है जो प्रेम और कर्तव्य के बीच फँसकर थक चुकी है — वह मुक्ति चाहती है, पर बंधन उसे नहीं छोड़ते।

  2. ତପନ କୁମାର ନାୟକଙ୍କ “ଧାଗା” କବିତାଟି ଗଭୀର ଅନୁଭବ, ସତ୍ୟ ସମ୍ବେଦନା ଓ ଜୀବନର ଦାୟିତ୍ୱମୟ ବନ୍ଧନକୁ ସୁନ୍ଦର ପ୍ରତୀକରେ ଚିତ୍ରିତ କରିଛି। କବିଙ୍କ ସହଜ ଭାଷାରେ କଥା କହିବା ଶୈଳୀ ପାଠକଙ୍କ ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରେ।

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